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    देवदास: दास से देव की ओर: DevDas : From Dev to Das (1 Book 2) (Hindi Edition)

    Por Krishna Kant Pathak

    Sobre

    हर आदमी अलग है और सब की अपनी जीवनधारा है। जिन्दगी है ही इतनी अनूठी कि इसे एक धारा में बहते देखने वाले इस से अनजान रह जातेहैं।
    आज हमारी जीवनधारा, बस, दो दिशाओं में बँटी हुई दिखती है−−
    पहली, जो जीवन जीने की प्रबन्धनात्मक दृष्टि अपनाती है, मैं इसे जीवन-कौशल कहता हूँ। इसमें बस जीत की, सफलता की, लोकप्रियता की तकनीक सिखाई जाती है। यह सफलता के सूत्र ढूँढ़ने वालों की विधाहै।
    दूसरी, जो जीवन जीने की आध्यात्मिक दृष्टि अपनाती है, मैं इसे जीवन-दर्शन कहता हूँ, जिसमें धर्म, नैतिकता, आध्यात्मिकता के उपदेश सुनाए जाते हैं। यह मुक्ति के मंत्र तलाशने वालों की विधा है।
    दोनों धाराएँ अपनी जगह पर ठीक या गलत हो सकती हैं, पर कभी भी पूरी नहीं हो सकतीं। एक तीसरी भी जीवनशैली है, जहाँ जीवनधारा गीत गाती हुई चलती है, भावनाओं में मचलती है और दिल की दुनिया में खो जाती है। मैं इसे जीवन की कला कहता हूँ, जो आनन्द का उत्सव मनाने वालों की विधा है। इस पुस्तक में इसी दृष्टि को अपनाया गया है।
    यह जीवन जीने की काव्यात्मक विधा है, परन्तु इसका साहित्य से कोई सम्बन्ध नहीं है। यह भावनाओं का संसार है, जो जरूरी नहीं कि कविता के रूप में फूटे, कहानी के रूप में बयान हो और फिर नाटक की तरह चरितार्थ हो।
    यह एक बचकानी किस्सागोई है, लेकिन इसके भीतर एक प्रौढ़ जीवन-दर्शन और एक युवा जीवन-दृष्टि है। यह हमारे स्वप्नलोक की कथा है, इसकी घटनाओं का यथार्थ से कोई सम्बन्ध नहीं है, परन्तु इस राह पर चलकर आप उसे यथार्थ में चरितार्थ होते पा सकते हैं।
    इसमें तितली और देवदास रूपी केवल दो काल्पनिक चरित्रों को अनगिनत अविश्वसनीय-सी घटनाओं से जोड़ते हुए उनका आपसी संवाद कराया गया है। यह संवाद एक सहयात्रा है, जो घर से बाग, बाग से खेत, खेत से नदी, नदी से सागर और फिर सागर से शिखर पर जाकर समाप्त होती है। सच कहें, तो यह समाप्त भी नहीं होती, बल्कि एक नई यात्रा का प्रस्थान बिन्दु बन जाती है−−शिखर से धरातल की ओर लौटने की और फिर ज्वालामुखियों के पार जाने की। और साथ ही दास से देव की ओर जाने की.
    आशा है, अपनी कपोल-काल्पनिकता और पूर्ण प्रतीकात्मकता में भी यह जीवन जीने की कला सिखलाने में सफल होगी। पुस्तक की कथा घटनाप्रधान नहीं है, किन्तु हर एक घटना सोद्देश्य रखी गई है। सरलता के लिये यह पुस्तक अनेक छोटे-छोटे उपखण्डों में विभक्त है, जहाँ से प्रायः नई कथा या कथा के नये सूत्र शुरू होते हैं। इनमें हर एक परिच्छेद या उपकथा का अपने-आप में स्वतन्त्र संदेशात्मक महत्त्व है।
    संदेश सरल हों और सरल लोगों के लिए सरस व सुबोध हों−− यही इस शैली का लक्ष्य है। इस कथा के नायक देवदास का अनुभव और कथा की सूत्रधार तितली का दावा है कि आप भी इसके प्रवाह में कुछ दूर बह कर, डूब कर और खो कर अपने ही भीतर खोई खुशी को खोज पाएँगे।
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