मानिक जोशी की लम्बी कविता कूर्मांचल का प्रकृति सौन्दर्य उनके द्वारा उनके गृह मण्डल कुमाऊँ के प्रति उनके विषेश अनुराग को प्रदर्शित करती है। इस कविता की पंक्तियाँ विभिन्न समय पर तब लिखी गयी थीं जब वो अपने गृह मण्डल कुमाऊँ से दूर रहा करते थे। इस कविता की आरम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार से हैं।-
करता था भ्रमण दिवाकाल में एकाकी
जब मैं उन राहों पर
तब कर श्रवण प्रकृति संगीत सतत
होना हर्षित
कुमाऊँ के उन वन पथों की
मुझे बहुत याद आया करती है
कूर्मांचल के प्रकृति सौन्दर्य की
मुझे बहुत याद आया करती है
खड़े हो कुमाऊँ के प्रिय वन क्षेत्र में
आकाश को जब निहार
दशों दिशाओं में निज दृष्टि फेरा करता था
चीड़ देवदार बाँज बुराँस के
उच्च तरूओं के पल्लवों से छनकर आने वाली
उन सरल विरल रवि रष्मियों की
मुझे बहुत याद आया करती है
कूर्मांचल के प्रकृति सौन्दर्य की
मुझे बहुत याद आया करती है
Kurmanchal Ka Prakriti Saundarya: Lambi kavita (Hindi Edition)
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